‘कौन देस को वासी.... वेणु की डायरी का एक अंश
अनकही उदासियों के साये में....
पूरे चार वर्ष बाद लौटा हूं अमेरिका से। सोचा था, विशाखा दीदी और उसके ससुराल वाले खुशी से निहाल हो जाएंगे।..... लेकिन लौटता हुआ उदास हूं मैं। एक वही तो दीदी थी मेरी। मुझे पीठ पर घुड़ैयॉं लाद कर मेरी ‘घुड़ चढ़ी‘ कराने वाली विशाखा दीदी। चाचा, मामा, बड़े ताऊ जी, सब चिढ़ाते लेकिन उसे जरा चिढ़ नहीं होती। हमेशा अपने लाडले छुटंके भाई को गोदी में लादे, पास-पड़ोस में उसकी नुमाइश करती घूमती - सखी-सहेलियों से कहती -देखो, कैसा गोरा चिट्टा है, हम बहनों सा सांवला नहीं... थोड़ा बड़ा हुआ तो - मीनू! तुम्हारे भाई की क्या पोजीशन आई क्लास में? हमारा वेणु न फिर फर्स्ट आया - सब हंसते कि खुद तो अंग्रेजी, गणित दोनों में रपट गई... (वह तो गनीमत हुई कि अंग्रेजी में पांच और गणित में तीन ही नंबर कम हैं तो एक में ग्रेस मार्क मिल गए - एक का रि-इग्जाम हो जायेगा तो क्लास, चढ़ जाएगी) लेकिन उस सब पर सोग मनाने या झेंपने की जगह भाई के रिजल्ट की दुंदुभी बजाती फिर रही है।To read full Story click here
No comments:
Post a Comment