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माय नेम इश ताता

सूर्यबाला की चर्चित कहानियों में एक- कुछ अंश

ताता को दादी बड़ी अजूबा लगीं। न यह आया थी, न आंटी। ऐपल, ऑरेंज वाली ताई भी नहीं और न कपड़े धोकर पोछा मारने वाली शेवंती।
उसने दादी के पास आकर पूछा- दादी! तुम कौन हो?
दादी ने उसे अपनी गोद में समेटकर कहा- 'अपनी ताता की दादी और तुम्हारे पापा की मम्मी'।
दादी ने अपनी अटैची खोली। ताता ने पूछा-
-ये तुम्हारे कपले हैं? बश इतने?
-हां!, दादी हंसी
- 'दादी तुम पुअल हो?' पुअल बच्चे गंदे होते हैं। वे शड़क पर खेलते हैं। दंदी चीजे खाते हैं, इशी से कार के नीचे दब जाते हैं.... एक्शीडेंट...

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बहनों का जलसा

इधर के वर्षों में लिखी सूर्यबाला की एक अनूठी कहानी जिसे उन्होंने अपनी दिवंगता बहन को समर्पित किया है। (कुछ अंश) -

- अगर हम इस गाड़ी के इंजन को पीछे की तरफ लगा दें तो यह ट्रेन उल्टी चलती जाएगी न!... और हम सब ऐसे ही बैठे रहेंगे, साथ-साथ... कभीअलग नहीं होंगे...
- अरे वाह! शाब्बाश छोटी! क्या बात सूझी है तुझे... चल हम चारो बहनें इस गाड़ी के कलपुर्जे तजबीजते हैं और ऐसी चाभी घुमाते हैं कि हम चारोहमेशा हमेशा-
वे सब आखीरी बार एक साथ उन्मुक्त हंसना चाहती थीं कि-
-‘स्टेशन आ गया‘
- उतरने से पहले वे चारों एक साथ गलबहियों में प्रार्थना के गुंबद की तरह जुड़ीं फिर अलग-अलग हो गयीं।
- गाड़ी धीरे-धीरे खिसक रही थी।
- निर्जन प्लेटफॉर्म पर, मंझली अकेली अपने थैले के साथ खड़ी थी..... और ट्रेन के दरवाजे पर सिर से सिर जोड़े तीनों बहनें एक टक, ओझल होनेतक उसे देखे जा रहीं थीं।....

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